हे वीर ! चलो ! हम फिर से अपना राष्ट्रधर्म निभाते हैं ,
आज शिराओं में फिर से ऊष्ण रक्त बहाते हैं ।
हे वीर ! चलो ! हम फिर से अपना राष्ट्रधर्म निभाते हैं ,
अपनी इस सोंधी मिट्टी में कुछ स्वेद-बूंद मिलाते हैं ।
हे वीर ! चलो ! हम फिर से अपना राष्ट्रधर्म निभाते हैं ,
जो बेच रहे इस मिट्टी को उसको मिट्टी में मिलाते हैं ।
हे वीर ! चलो ! हम फिर से अपना राष्ट्रधर्म निभाते हैं ,
बिगुल बजे रणभूमि में, शत्रु को आँख दिखाते हैं ।
हे वीर ! चलो ! हम फिर से अपना राष्ट्रधर्म निभाते हैं ,
विश्व-गुरु का खोया मान देश को फिर लौटाते हैं ।
हे वीर ! चलो ! हम फिर से अपना राष्ट्रधर्म निभाते हैं ,
मातृभूमि के चरणों में फिर अपना शीश चढ़ाते हैं ।
कवि - राजू रंजन
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