पिछले दिनों जिस प्रकार से एक बड़ी आईटी एवं कंस्ट्रक्शन कंपनी के चेयरमैन का बयान आया कि लोगों को सप्ताह में 90 घंटे काम काम करना चाहिए ! वह हमारे सामने कई तरह के प्रश्न खड़े करता है । सबसे पहली बात मन में आती है कि ये कंपनियां कहीं आधुनिक भारत की ईस्ट इंडिया कंपनी तो नही जिनका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक मुनाफा कमाना भर रह गया है । लोगों को कम से कम वेतन देना और अधिक से अधिक काम कराना। ये शोषक पूंजीवादी व्यवस्था का विकृत चेहरा है जो शायद फिर से हमारे सामने आ रहा है । 51 करोड़ की सालाना सैलरी पाने वाले को शायद यह अंदाजा नहीं होगा की महीने के 30-40 हजार पाने वाले कर्मचारी को घर के लिए राशन , सब्जी भी लाना होता है , खाना बनाना होता है, बच्चों को स्कूल छोड़ना, पढ़ाना इत्यादि बहुत से काम होते हैं जो समय मांगते हैं । इससे पहले भी एक आईटी कंपनी के शीर्ष में बैठे व्यक्ति का मिलता जुलता बयान आया था । और इन अधिक घंटे काम के लिए "भारत को विकसित बनाना है " इस तर्क की आड़ ली जाती है । मेरा उन सभी महापुरुषों से निवेदन है कि आप दिन में 24 घंटे अपनी कंपनी को खुला रखो । लेकिन 6 घंटे के चार शिफ्ट में अलग अलग चार लोगों को हायर करो । इससे एक की जगह चार लोगों को रोजगार मिलेगा और तुम्हारी कंपनी दिन में 24 घंटे काम करती रहेगी । और आपलोगों के भारत को विकसित बनाने का सपना तुरंत पूरा हो जाएगा । लेकिन ऐसा नहीं करेंगे ये लोग क्योंकि इनको भारत को विकसित नहीं बनाना है बल्कि ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना है । और मुनाफा तभी बनता है जब कम से कम कर्मचारी रखकर अधिक से अधिक काम कराया जाए । और इतना अधिक काम करने से किसी की मौत हो जाए हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक हो जाए तो भी कोई बात नही । कंपनी का मुनाफा बढ़ता रहना चाहिए । ऐसी सोच रखनेवाले निश्चित रूप से मानसिक रोगी हैं और उन्हें किसी कंपनी के उच्च पद पर बिठाने के बजाय पागलखाने भेजना चाहिए ।
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