पुकार

 


मृत्यु को भी पुकारा  कई बार ,
बढ़ाया अपना हाथ ,
पर उसने भी कह दिया ,
मैं किसी प्रेमी का हाथ नहीं थामती ,
कि मुझे भी प्रेम से लगता है डर ,
कि असह्य है यह प्रेम का रोग ,
कि मैं नहीं देख सकती ,
रक्तिम नेत्रों से ढलकते अश्रु ,
कि मैं नहीं सह सकती ,
प्रेम की असह्य पीड़ा ,
कि मेरे कान नहीं सुन सकते ,
प्रेमी की वह करुण पुकार,
कि मैं तो हरती हूँ प्राण बस एक बार ,
पर प्रेम हरता है प्राण बार-बार !

कवि - राजू रंजन 




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