अनुरोध

 


मैं कब से खड़ा यहां,

अब तो हाथ बढ़ा दो ।

मैं अब और क्या करूँ ?

थोड़ा तो बतला दो ।

जो जो भी मैं कर सकता था,

सब प्रयास कर डाले,

बचा है क्या अब भी कुछ करने को ?

थोड़ा तो बतला दो ।

ये मौन तुम्हारा निगल रहा है,

हर दिन थोड़ा मुझको,

कैसे अब जीना होगा ?

थोड़ा तो बतला दो ।

क्या पीड़ा नही उठती तुम्हारे मन के अंदर ?

तुम अपने मन के घावों को,

थोड़ा तो दिखला दो ।

बहुत दिन बीत चुके अब,

आओ साथ में रोये,

एक दूसरे के आँसू पोछे,

बस इतना प्यार दिखला दो ।

कवि- राजू रंजन

टिप्पणियाँ