मैं पार अग्नि के द्वार सभी,
स्वर्ण से अब कुंदन हुआ ।
अब बारी तुम्हारी है प्रियवर ,
अग्नि- पथ पर चलना होगा ।
मैं पार खड़ा इस ओर अब,
तुमको भी तो बढ़ना होगा ।
मैं दुर्जेय सा निर्भीक खड़ा,
तुमको भी तो लड़ना होगा ।
इस रण को मैं एकाकी लड़ा ,
अब तुमको भी जुड़ना होगा ।
विजय तो है बस पास खड़ी,
मन भावों से भरना होगा ।
कवि - राजू रंजन
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