अँजुली भर-भर प्रणय-पुष्प मैं,
तुम पर बारम्बार लुटाऊँ ।
तुम्हारे संग के अमिट क्षणों को,
स्मृति में बारम्बार दुहराऊँ ।
तप्त सूर्य - सा सांध्य-समय मैं,
स्वयं को बारम्बार डुबाऊँ ।
तुम्हारे मुख की मंद स्मिति को,
अपलक बारम्बार निहारूँ ।
प्रेम-निधि के अक्षय-कोष को,
तुम पर बारम्बार लुटाऊँ ।
प्रेम-यज्ञ की समिधा बनकर,
स्वयं को बारम्बार तपाऊँ ।
कवि - राजू रंजन
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