नूर

 



जो डूबा इश्क में बोलो कहाँ वो पार निकला है,

फ़ना कर जिस्म को रूह होकर पाक निकला है ।

तुम्हारी रूह के साए में जिसकी उम्र गुजरी है,

न पूछो उसके कैसे दिन और कैसी रात गुजरी है ।

तरसते लब हमारे बस तुम्हीं को याद करते हैं,

जुबाँ पर फिर चढ़े वो नाम यही फ़रियाद करते हैं ।

तुम्हारे अक्स में खुद का ही हरदम अक्स देखा है,

खुदा के पार भी जैसे खुदा का नूर देखा है ।

शायर -राजू रंजन


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