क्या पता रूठना भी तुम्हारी नजाकत हो ।
राह में बैठे हैं पलके बिछाए,
न जाने कब तुम्हारी इनायत हो ।
कहो तो सजदा करें तुम्हारी उम्र भर,
क्या पता यही खुदा की नियामत हो ।
चाँद भी करता है तुम्हारी सरगोशी,
क्या पता उसे भी रश्क की हिदायत हो ।
अब तो मान भी जाओ भूलकर हमारी ख़ामियाँ,
ज़रा हमें भी तो इश्क की इजाजत हो ।
शायर - राजू रंजन
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