अजस्र ज्योति


कि जब कोई मार्ग नहीं होगा शेष,

मैं घुल जाऊँगा तुम्हारे आस-पास की हवाओं में,

और छू लूँगा तुम्हारी लटों को चुपके से,

उतर जाऊँगा तुम्हारे भीतर तुम्हारी साँसों के सहारे ।

कि जब मेरी आवाज नहीं पहुँच पाएगी तुम तक,

विचार बन प्रविष्ट हो जाऊँगा तुम्हारे अन्तःस्तल तक,

और पलटता रहूँगा तुम्हारी स्मृतियों के पन्नों को,

निकाल लाऊँगा तुम्हें बाहर मिटाकर सभी अवरोध ।

कि जब होंगे सभी द्वार बंद,

तब आऊँगा मैं हृदय के रास्ते,

और समा जाऊँगा तुम्हारे रोम-रोम में,

फैलाऊंगा वहाँ प्रेम की अजस्र ज्योति ।

कवि- राजू रंजन



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