विराट

 


काल मुख वह्नि विराट 

ग्रस हास शेष रुद्नोच्छ्वास

व्योम लीलित व्यक्त पाश

अव्यक्त शेष शून्य श्वास

आकंठ हलाहल क्षुधित घात

निर्द्वन्द्व हृद बद्ध ज्ञान

निज निर्णय रिक्त त्राण

अद्वैत मिश्रित द्वैत प्राण 

कवि- राजू रंजन

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