राह तकते - तकते पथरा सी गयी हैं आँखें,
तुम जो बिन बताए आ जाते तो बात कुछ और होती ।
खुश्क हो चुकी है हवा इन फ़िज़ाओं की ,
तुम जो थोड़ा प्यार बरसा जाते तो बात कुछ और होती ।
समंदर भी ठहर सा गया है शायद,
तुम जो इक लहर उठा जाते तो बात कुछ और होती ।
बर्फ ने तासीर बदल दी है शायद,
तुम जो उसे पिघला जाते तो बात कुछ और होती ।
दर्द बढ़ता ही जाता है इस नासूर का,
तुम जो थोड़ा मरहम लगा जाते तो बात कुछ और होती ।
सब फूल सूख चुके हैं वादियों के,
तुम जो अपनी खुशबू लुटा पाते तो बात कुछ और होती ।
न जाने कहाँ गयी है नींद इन आँखों की ,
तुम जो ये सर सहला पाते तो बात कुछ और होती ।
कवि - राजू रंजन
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