सब तुम्हारा


 कि मिल जाती है आने की आहट जिससे,

वो खुशबू बस तुम्हारी ही है ।

कि यादों की रेशमी चादर में जो फूल कढ़े हैं,

वो छुअन के बस तुम्हारे ही हैं ।

कि मेरी आँखों में बसी हैं जो तस्वीरें ,

वो सब बस तुम्हारी ही हैं ।

कि जिसको फिर-फिर सहेजता रहता हूँ,

वो याद बस तुम्हारी ही है ।

कि मन करता है आज भी बस सुनता रहूँ,

वो बोल मिश्री के बस तुम्हारे ही हैं ।

कि बँधी हुई रहेगी हमेशा मेरे प्रेम की डोर जिससे,

वो पतंग बस तुम्हारी ही है ।

कवि- राजू रंजन

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