तुम्हारी मौजूदगी

 


मुझसे छीन सकते हो अपनी मौजूदगी,

यादों में बसी छुअन को कैसे छीन पाओगे ?

भले छोड़ सकते हो मिलना-जुलना,

ख्वाबों में लिपटना कैसे छोड़ पाओगे ?

दूर कर सकते हो अपनी परछाई से,

जो मुझमें उतरा है उसे कैसे दूर कर पाओगे ?

दूर रख लो भले मुझे जुल्फ की छाँव से,

इश्क़ की छाँव से कैसे दूर कर पाओगे ?

छुपा दो चाहे तस्वीर सभी मेरे सिरहाने से,

जो दिल में बसी है उसे कैसे छिपाओगे ?

भले न चूमने दो पाँवों के निशान,

मुझे उन गलियों से गुजरने से कैसे रोक पाओगे ?

कवि - राजू रंजन


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