सुकून

 


बहुत थक गया हूँ मैं ,

थोड़ा सुकून मुझे भी तो चाहिए ।

तलवे छिल गए हैं इन पथरीली राहों पर,

दूब की थोड़ी नमी मुझे भी तो चाहिए ।

सिर पर सूरज को बहुत ढो चुका,

इन पेड़ों की छाँह मुझे भी तो चाहिए ।

दिल पर बने घाव लहलहा रहे हैं आज भी,

इन पर मरहम मुझे भी तो चाहिए ।

चाँद को चकोर तो देख ही लेता है रोज ,

इक दीदार मुझे भी तो चाहिए ।

बहुत जलन है इश्क़ की गर्म हवा में ,

इक बरसात मुझे भी तो चाहिए ।

इंतज़ार में खो रहा है होश मेरा,

इक मुलाकात मुझे भी तो चाहिए ।

बहुत थक गया हूँ मैं ,

थोड़ा सुकून मुझे भी तो चाहिए ।

कवि - राजू रंजन


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