पल-पल इंतजार में राह वो तकती रही,
सांसें न थमी मेरी रूह बस जलती रही ।
बेवफ़ाई का यूँ ही कयास न लगाया करो,
जो रूह में उतरा हो उसपर इल्जाम न लगाया करो ।
रूह रौशन है अब नाम कहाँ बाकी है ,
घुला वो इश्क़ में अब पहचान कहाँ बाकी है ।
उसे सज़दा करो कि कम से कम वो दिखता है,
उतरोगे रूह में तो बस इश्क़- इश्क़ ही दिखता है ।
कवि/शायर - राजू रंजन
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