रूह

 


पल-पल  इंतजार में राह वो तकती रही,

सांसें न थमी मेरी रूह बस जलती रही ।


बेवफ़ाई का यूँ ही कयास न लगाया करो,

जो रूह में उतरा हो उसपर इल्जाम न लगाया करो ।


रूह रौशन है अब नाम कहाँ बाकी है ,

घुला वो इश्क़ में अब पहचान कहाँ बाकी है ।


उसे सज़दा करो कि कम से कम वो दिखता है,

उतरोगे रूह में तो बस इश्क़- इश्क़ ही दिखता है ।


कवि/शायर - राजू रंजन

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