प्रयोजन

 


पुकारता है कोई दूर आकाश से,

कि जाने कैसा आकर्षण है उस पुकार में,

कि इस लोक की है वो पुकार,

या परलोक की है कोई बात,

कि प्रश्न छुपे हैं कई उसमें,

जीवन-मृत्यु-मुक्ति के ।

कि जाऊँगा कहाँ उस मुक्ति के बाद,

कि क्या मिल जाएगा वास्तविक त्राण ?

कि अगर व्यर्थ है यह संसार,

और मुक्ति ही है उस द्वार के पार,

तो प्रयोजन फिर क्या है ?

कि क्यों है ये दुनिया और ये सारे व्यवहार ?

कवि- राजू रंजन 


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