जहाँ संशय मिटे, बंधन खुले, स्वच्छंद विचरण हो,
तुम्हे ना रोकता कोई न कोई मोह - बंधन हो ।
उड़ो तो आसमां में ना तुम्हारा कोई सानी हो,
बनो तो आग जैसे घर कोई तुमसे ही रौशन हो ।
हृदय का प्रेम जो बरसे तो सारा जग थिरकता हो,
पवन भी लेके सुरभि बस तुम्हीं से जब निकलता हो ।
मगन जब मन रहे और चित्त बस भावों में डूबा हो,
जगत ने चुन लिया अब तो तुम्हीं इस जग के संबल हो ।
कवि- राजू रंजन
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