हैं पत्थर तो सब एक से ही,
कुछ पूजे और कुछ तोड़े जाते ।
महिमा तो है बस उसकी ,
भाव जिसके भरे जाते ।
निश्चेष्ट पड़ा था वो कल भी,
है आज भी वो निश्चेष्ट पड़ा ।
पर कल जो था पीड़ा देता,
उसने आज क्लेश का ताप हरा ।
आराध्य का क्या कुछ तेज कहो,
जो आराधक ही शेष हुआ ।
कवि- राजू रंजन
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