आओ साकी फिर छलका दो,
इस प्याले में आज शराब ।
हलक से उतरे तो फिर निकले,
मेरे जुबां से फिर महताब ।
आओ साकी फिर छलका दो,
इस प्याले में आज शराब ।
इश्क़ बहे फिर मेरे रग- रग,
देखूं बस अपने ही ख्वाब ।
आओ साकी फिर छलका दो,
इस प्याले में आज शराब ।
भूल सकूँ मैं जग के बंधन ,
और लुटाऊँ सब असबाब ।
आओ साकी फिर छलका दो,
इस प्याले में आज शराब ।
चाँद घुले बस रूह में मेरी,
कभी न निकले फिर आफ़ताब ।
आओ साकी फिर छलका दो,
इस प्याले में आज शराब ।
कवि - राजू रंजन
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