शेष

 


विश्वास- बंध जब विगलित हों,

तो श्वास- बंध क्यों शेष रहें ?

जब व्यर्थ समय का चक्र चले,

तो शब्द- दंश क्यों शेष रहें ?

जब असत्य अकंप हो वाणी में,

तो सत्य कहो क्यों शेष रहे ?

जब भाव नहीं हो जीवन में,

तो काल कहो क्यों शेष रहे ?

कवि- राजू रंजन

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