जब - जब देखा,
उसको देखा ।
प्रणय - ताप से गलते देखा ,
विरह अगन में जलते देखा ।
हर क्षण लीला करते देखा,
शून्य में सम बरतते देखा ।
जब - जब देखा,
उसको देखा ।
उसको शर्तें करते देखा,
शर्तें पूरी करते देखा ,
और अधूरी रखते देखा ।
जब - जब देखा ,
उसको देखा ।
सबको राह दिखाते देखा,
और कभी भटकाते देखा ।
मन्मथ बन इठलाते देखा,
स्वयं जल अनंग कहाते देखा ।
मैंने तो बस उसको देखा !
कवि - राजू रंजन
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