किसान के आँसू

सेवक जी ! सेवक जी !

जरा आँख खोलिए,

ठंड बड़ी है दिल्ली में ,

आप काशी हो लिए ।

चाय बेची, कंपनी बेची,

बैंक बेचने चल दिये,

थोड़ा तो लिहाज करते,

माटी बेचने चल दिये ।

चंपारण में बापू रोये,

सौ साल हो गए,

अंग्रेज तो चले गए,

आप निलहा हो लिए ।

सर्दी में वो आँसू पीकर,

पेट दबाकर सो लिए ,

आपने खिचड़ी खाई ,

हाथ अपने धो लिए ।

कवि - राजू रंजन

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