दिवस बीते - ऋतुएँ बदलें ,
सृष्टि का स्वरूप बदले ,
पर, सुनो ! हे ! जग के वंदन !
मेरा पथ अब भी वही है ।
कितने कंकड़ , कितने पत्थर ,
भले चुभे हो पग में मेरे ,
पर, सुनो ! हे ! लोक - पावन !
मेरा पथ अब भी वही है ।
झुलसी है ये साँस मेरी ,
जल रही है ये हवा ,
पर, सुनो ! हे ! लोक - चेतन !
मेरा पथ अब भी वही है ।
रक्त से रंजित पगों को ,
धो रहे हैं ये दृग मेरे,
पर, सुनो ! हे ! विश्व के मन !
मेरा पथ अब भी वही है ।
अग्नि की लपटें घिरी हों,
या हो शिलाएं बर्फ की ,
पर, सुनो ! हे ! कष्ट - भंजन !
मेरा पथ अब भी वही है ।
कवि - राजू रंजन
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