हिमानी


रोक लो इस नदी को ,
उसी वक्षस्थल में ।
कि जमने दो उन्हें ,
हिमानियों की तरह ,
कि अगली बार जब पिघले यह ,
जल - प्लावन में डुबो दे ,
हर कलुष , हर द्वंद्व ।
कि ध्वस्त हो जाएँ ,
समस्त वर्जनाएं ,
उसकी तेज लहरों से ।
कि रहो शेष ,
बस तुम !
निर्द्वन्द्व ! निर्बंध ! निष्कलुष !
कवि - राजू रंजन

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