शाप

धरती के दो- दो टुकड़े हों ,
और अम्बर में फिर से आग लगे ।
सकल विश्व को आतप हो ,
और प्राणों में फिर से दाह लगे ।
नश्वर हो ईश्वर ये सब कुछ ,
और शून्य - शून्य आकाश लगे ।
चेतन को फिर से लीलो तुम ,
यह सृष्टि फिर निस्सार लगे ।
व्याकुल चित्त में हो विराग ,
सब रागों पर विराम लगे ।
सब तरसें प्रेम के अमृत को ,
इस जग को ऐसा शाप लगे ।

कवि - राजू रंजन

टिप्पणियाँ