मेरा प्रेम


मेरा प्रेम नहीं है
तुम्हे गुलदस्ते में फूलों की तरह सजा देना ।
कि मेरा प्रेम नहीं है
हरदम मेरी उँगलियाँ थामे रहो ।
कि मेरा प्रेम नहीं है
हर निर्णय के लिए ताको किसी की ओर ।
मेरा प्रेम है -
कि तुम हवा के झोंकों के साथ
पूरी बगिया में इधर - उधर उड़ते रहो ।
कि तुम्हारी गंध घेर ले संपूर्ण धरा को ।
कि तुम थपेड़े खाओ समुद्र की लहरों के ।
कि तूफ़ान तुम्हे उठाकर पटके इन चट्टानों पर ।
ताकि तुम पहले से भी मजबूत बनकर उठो ।
कि तुम खुद हो सक्षम
और हो हर निर्णय तुम्हारा ।
सिर्फ तुम्हारा !

कवि - राजू रंजन

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