वो घूम सकते हैं सर्दियों में नंगे बदन ,
और ओढ़ सकते हैं ऊनी लबादे गर्मियों में ।
शाख पर लटकते बंदरों की भाँति ,
उन्हें शौक है उल्टा लटकने का ।
पता है उन्हें सापेक्षता का रहस्य ,
कि कुछ भी उल्टा या सीधा नहीं होता ।
कर सकते हैं वे सर्वदा ,
सत्य को निस्तेज एवं असत्य को तेजोमय ।
कि रुला सकते हैं वे न्याय को ,
और बिठा सकते हैं शिखर पर अन्याय को ।
कवि - राजू रंजन
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