घुटने भर पानी में

rain


जब कई महीनों तक शहर में कहीं सड़क पर पानी न दिखे और अचानक रात में घनघोर बारिश हो । वातावरण में हलकी सी नमी ! और जब सड़क पर घुटनों तक पानी दिखता है  तो एक पल को ख़याल आता है- उफ़! ये बारिश ! अब इस गंदे पानी में उतरना पड़ेगा । फिर भी काम पर तो जाना ही पड़ेगा । पैंट को घुटनों तक मोड़ कर उतर पड़ते है मन को मार कर ।
पर दो चार क़दमों के बाद ही वो बचपन में पानी में छप - छप करते हुए कूदना याद आने लगता है । फिर मन करता है संपूर्ण वर्जनाओं को तोड़ते हुए फिर से छप- छप कूदना शुरू कर दें । पर बचपन की वो निश्छलता शेष नहीं रही । लोग क्या सोचेंगे ! और चल पड़ते हैं सधे क़दमों के साथ कि कहीं पाँव फिसल ना जाएँ ।
लेकिन ना जाने क्यों उस क्षण भी पानी से गुजरते हर इंसान के चेहरे पर एक मुस्कान ही दिखती है । हल्के से मुस्कुराते हुए चेहरे ! शायद उनका अवचेतन मन भी उसी आनंद को महसूस करता है उस घुटने भर पानी में !

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