शून्य-शून्य से इस जीवन में,
आओ कोई भाव जगाएँ ।
तज कर सब लाभों को फिर से,
हानि का एक दाँव लगाएँ ।
जीत के सुख को छोड़ चलें फिर,
हार को आज फिर अंक लगाएँ ।
पीयूष - पान तो बहुत कर चुके ,
आज हलाहल कंठ लगाएँ ।
प्रेम के पथ पर चल लें थोडा,
काँटों के भी भाग्य जगाएँ ।
कवि- राजू रंजन
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