रश्क़

 


बहती हवा पूछती है कि जाऊँ मैं कहाँ ?

चुराई है जो खुशबू वो लुटाऊँ मैं कहाँ ?


सूरज भी पूछता है कि जाऊँ मैं कहाँ ?

जो रात भर न सोये उन्हें जगाऊँ मैं कहाँ ?


फरिश्ते भी पूछते हैं सर झुकाऊँ मैं कहाँ ?

जो खुद में ना रहा उसे पाऊँ मैं कहाँ ?


अब खुदा भी पूछते हैं हुनर दिखाऊँ मैं कहाँ ?

जिससे होता रश्क़ उसको फिर बनाऊँ मैं कहाँ ?


कवि- राजू रंजन

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