वो थोड़ी घबराई - सी थी !
दीये की रौशनी में काले लबादे में घिरा उसका चेहरा काफी खतरनाक दिख रहा था ।
इससे पहले कि उसके मुँह से चीख निकलती , लबादे वाले आदमी ने उसके मुंह को जोर से हाथों से दबा दिया । दूसरे हाथ से अपने होंठों पर ऊँगली रखकर चुप रहने का इशारा किया । इशारे के साथ धमकी भी थी , क्योंकि अगले ही क्षण उसने दूसरे हाथ से उसकी गर्दन को दबाने का उपक्रम भी किया ।
चुप रहने में ही उसकी खैरियत थी !
गर्दन को सहलाते हुए वो चुपचाप दीवाल के सहारे खिसकते हुए नीचे बैठ गयी ।
उसकी आँखों से डर साफ़ झलक रहा था । उसकी छोटी - सी गलती की वजह से यह खतरनाक आदमी उसके घर में घुस आया था । अगर शाम होने से पहले उसने दरवाजे को ठीक से बंद कर दिया होता तो ऐसा नहीं होता ।
आज चार दिन हुए उसके माँ - बाप को शहर गए हुए । शायद कल सुबह वापस आ जाएँ । और उसका नशेड़ी भाई ! उसे तो बस कहीं से शराब मिलनी चाहिए । दोपहर का सोया सीधे रात को ही उठेगा और वो भी सिर्फ खाने के लिए ।
अभी वह रसोई में खाना पकाने ही आई थी कि इस खतरनाक आदमी से पाला पड़ गया ।
न जाने क्या करेगा ?
" मुझे भूख लगी है । कुछ खाने को दो । " धीमी आवाज़ में वह आदमी बड़बड़ाया । उसकी आँखों में स्याह ख़ामोशी थी ।
" तुम्हे ही कह रहा हूँ ! कुछ खाने को दो ! " थोड़ी कड़क आवाज़ में उसने डांटते हुए कहा । इस बार उस लड़की के शरीर में कुछ हरकत हुई ।
वह सहमती हुई उठ खड़ी हुई । उसने दोपहर की बची छह रोटियों को निकाला जो उसने कपडे में लपेटकर रखा था । दूर से ही वो रोटियों को बढ़ाने लगी मानों सामने कोई जंगली कुत्ता बैठा हो ।
उस इंसान में जानवरों सी भूख थी । उसने लपककर हाथों से रोटी छीन ली । इतनी तेज़ी से खाने लगा जैसे कई दिनों से भूखा हो । पलक झपकते ही उसने सारी रोटियाँ खा डाली । फिर खुद से घिसटता हुआ घड़े के पास पहुँचा और पानी निकालकर पीने लगा ।
हाँ ! वह घिसट रहा था ! - लड़की ने ध्यान से देखा । शायद घायल था ! उसके पैरों से खून निकल रहा था ।
पानी पीकर वह दीवाल की टेक लगाकर फर्श पर बैठ गया ।
उसके चेहरे पर घाव की पीड़ा के भाव दिख रहे थे ।
वह लड़की डरते - डरते उसके पास पहुँची । लड़की ने उसके पैर की ओर इशारा किया ।
" कुछ नहीं है ! बस गोली छूकर निकल गयी है । अभी इसका इलाज़ कर देता हूँ ।"
उस आदमी ने कमर से खंजर निकाला और उसकी नोक को दिए की लौ में गरम करने लगा । गरम होते ही उसने घाव पर उसे सटाया । उसने दोनों दांत भींच लिए । ऐसा तीन - चार बार करने के बाद उसने सामने खड़ी लड़की के दुपट्टे को एक झटके में खींच डाला ।
वो सहमकर दूर खड़ी हो गयी । पर, आदमी थोड़ा मुस्कुराया । उसने दुपट्टेे का एक चौथाई टुकड़ा हाथ से फाड़कर बाकी हिस्सा लड़की की तरफ वापस फेंक दिया । उसने दुपट्टे के उस टुकड़े से घाव को कसकर बाँध दिया ।
लड़की ने दुपट्टे को वापस लपेटा और कोने में दुबककर बैठ गयी ।
थोड़ी देर तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा । फिर उस आदमी ने ही पहले चुप्पी तोड़ी ।
" तुम्हारे माँ - बाप कहाँ हैं ? घर में कोई नहीं है क्या ?"
लड़की चुपचाप बैठी रही । मानों सवाल उससे किया ही नहीं गया हो ।
" तुमसे ही पूछ रहा हूँ ! " थोड़ी सख्ती से घूरते हुए उसने लड़की की ओर देखा ।
लड़की थोड़ी सहम - सी गयी । पर, अब बोलने के सिवा कोई चारा नहीं था ।
" वो शहर गए हैं । ऊपर के कमरे में भाई सो रहा है । "
"वो नशेड़ी ! जिसके बगल में शराब की बोतल पड़ी है । " आदमी थोडा मुस्कुराया ।
उसकी मुस्कान ने लड़की के डर को थोडा कम कर दिया । उसने फिर पूछा -
" वो शहर किस काम से गए हैं ? "
उसके मन में तो आया की सीधा बोल दे - तुम्हे इससे क्या मतलब ?
लेकिन खंजर पास में ही पड़ा था । उसका साहस नहीं हुआ ।
" हमारे चाचा शहर में रहते हैं । उनसे कुछ उधार माँगने गए हैं । अगर समय पर लगान नहीं भरा तो जमींदार हमारी जमीन नीलाम करा देगा । "
" जमीन क्या जमींदार के बाप की है ? " वो आदमी फर्श पर हाथ पटकता हुआ बड़बड़ाया ।
" नीलाम करवा देंगे ! एक - एक को हिसाब देना होगा ! "
सहसा ही उसकी आँखों की नसों में लाली दिखने लगी । उसपर एक उन्माद - सा छाने लगा ।
उस आदमी के शब्दों से लड़की को थोड़ी सी सहानुभूति मिली ।
" तुम कौन हो ? "- लड़की ने पूछा ।
लड़की के सवाल से शायद वो आदमी फिर से इस दुनिया में वापस लौट आया ।
" मैं कौन हूँ ? - यही तो मैं जानना चाहता हूँ कि मैं कौन हूँ ? पर, तुम्हारा सवाल अच्छा है । कोई मुझे हत्यारा कहता है , कोई लुटेरा कहता है तो कोई मुझे क्रांतिकारी कहता है । पर,मुझे आजतक यह पता नहीं चला कि मैं कौन हूँ ? "
उसने कहना जारी रखा -
" मैं शहर से एक गोरे के घर से लूट करके भागा हूँ । मेरे हाथ कुछ कुछ कीमती जवाहरात और कुछ रूपये लगे हैं । मैंने कुछ गलत नहीं किया । ये सब गोरे के पास यूँ ही पड़े थे । हमारे कुछ काम आ जायेंगे । अभी काफी हथियार खरीदने हैं हमें । फिर इस मुल्क को आजाद कराना है -इन गोरों से और हाँ ! तुम्हारे इन जमींदारों से भी ! अभी बहुत काम बाकी है और गोली भी अभी लगनी थी ! "
" वैसे कितने रूपये चुकाने हैं तुम्हे लगान के ? "
उस आदमी की खतरनाक बातों को सुनकर लड़की पूरी तरह सचेत हो चुकी थी । उसका रोम - रोम सजग था ।
" पचास रूपए चुकाने हैं ! कल बाबा लेकर आ जायेंगे । फिर हमारी जमीन नीलाम नहीं होगी । "
वो लड़की शून्य में ना जाने क्या देखने लगी ।
" हाँ ! ठीक है । अभी उधार लेकर लगान चुकाना । फिर उधार चुकाना ।"
आदमी हँसने लगा और फिर अचानक से गंभीर हो उठा ।
" कुछ करना होगा ! हमें ही करना होगा ! कोई ऊपर से नहीं आएगा ।"...... बड़बड़ाता हुआ वह भी शून्य में ताकने लगा ।
न जाने कब लड़की को नींद आ गयी ।
सूरज की धूप खिड़की से सीधे उस लड़की के चेहरे पर गिरी । उसके गोरे मुखड़े पर मुंदी हुई छोटी - छोटी आँखों में थोड़ी हलचल हुई । उसने अपने हाथ की आड़ लेते हुए आँखें खोली । सूरज ऊपर चढ़ आया था । पूरे घर में रौशनी थी । उसने ध्यान लगाकर सोचा तो रात की बात याद आई । उसने आस - पास देखा । पर, वो लबादे वाला आदमी कहीं नहीं था ।
उसने खिड़की से झाँका । उसके माँ - बाप रास्ते पर आते दिखे । वह दौड़कर दरवाजे पर पहुँची । माँ आगे थी और पीछे उसका बाप । दोनों धीमे क़दमों से भीतर आए । चेहरे पर गंभीरता थी , कोई खुशी नहीं । सामने पड़ी चारपाई पर दोनों बैठ गए । लड़की झट से पानी लेकर आई । वो खुश थी । पर, उन दोनों के चेहरे बुझे थे । पानी पिलाकर उसने सवाल किया -
" बाबा ! चाचा ने पैसे दिए क्या ? "
उसके बाबा के मुँह से कोई आवाज नहीं निकली । लेकिन माँ झट से बोल पड़ी -
" मैं तो पहले ही कहती थी अपने भाई से उम्मीद मत रखो । कोई और जुगाड़ करो । व्यापार में घाटा हुआ है ! अरे ! हजारों का व्यापार करनेवाले पचास रूपये नहीं दे सकते । किस्मत ही फूटी है तो कोई क्या करे ! जमीन तो गयी अपने हाथ से ! "
माँ ने माथे पर हाथ रख लिया और फर्श को घूरने लगी ।
बाप ने कुछ कहा नहीं ! बस बुझे मन से लड़की को वहां से हटाने के लिए कहा -
" जा बेटी ! कुछ खाना पका ले ! भूख लगी है । "
लड़की रसोई की तरफ फिर से मुड़ गयी ।
रोटी ! हाँ रोटी ही तो खिलाया था उसे ! वह रोटी के बर्तन की तरफ गई और कपडे को बाहर निकाला । बर्तन को धोना था । पर, कपडा थोडा वजनदार लगा ।
उसने कपडे को खोला । कपडे में कुछ सिक्के और नोट थे । साथ में एक कागज़ भी लपेटकर रखा था । उसने पैसों को गिना, पूरे पचास रुपए थे । उसने हड़बड़ाहट के साथ कागज़ को खोला । उसमें लिखा था -
" तुम्हारे खेत के गेहूँ की रोटियाँ बहुत मीठी होती हैं ।
ये खेत नीलाम नहीं होंगे और अगर हमलोग जिन्दा रहे तो देखना किसी का भी खेत नीलाम नहीं होगा ।
अगर जिंदगी रही तो दुबारा जरूर आऊंगा । तुम्हारे खेत के गेंहू की रोटियाँ खाने !
------ एक क्रांतिकारी ( यह नाम मुझे पसंद है ! )
लेखक - राजू रंजन
अति सुन्दर मित्र!
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