राजा और सितार

lotus leaf


राजा ने कहा - " सितार मंगवाओ ! "
दरबार में सितार लाया गया ।
राजा का अगला आदेश था - " जो इस सितार को बिना स्पर्श किए बजा देगा , उसे सबसे बड़े संगीतकार का ओहदा मिलेगा ।"
तमाम संगीतकार दरबार में आये । सबने अपना - अपना हुनर आजमाया ।
पर, कोई भी बिना स्पर्श किए सितार को नहीं बजा पाया ।
राजा थोडा सनकी था । उसने राज्य भर में मुनादी करवा दी कि इस राज्य में कोई भी संगीतकार कहलाने के लायक नहीं है ।
समूचे राज्य के संगीतकारों में हलचल मच गयी ।
अब बात उनकी प्रतिष्ठा पर आ गयी थी ।
कलाकार सबकुछ सह सकता है लेकिन अपमान नहीं !
संगीतकारों की बैठक हुई । और बैठक का नतीजा भी निकला !
अगले दिन दरबार में एक साधू आ पहुंचा ।
उसने राजा से कहा - " राजन् ! मैं तुम्हारा सितार बिना स्पर्श किए बजा दूंगा । पर, मेरी एक शर्त है ! "
" कैसी शर्त ? " - राजा ने पूछा ।
" मैं जो गीत गाऊंगा उसे सुनकर यह सितार बजने लगेगा । पर, यह तभी बजेगा जब राजा गीत सुनकर नाचे नहीं ।"
" ऐ साधू ! तू पागल है क्या ? तेरे गीत को सुनकर मैं क्यों नाचूँगा ? "
" हाँ ! महाराज ! मैं भी कुछ ऐसा ही सोचता हूँ की मेरे गीत को सुनकर आप नहीं नाचेंगे । तब यह सितार अपने आप बजने लगेगा । किन्तु, अगर आप नाचने लगे तो यह सितार नहीं बजेगा । "
" लगता है तुम्हारी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है । मैं क्यों नाचूँगा ? खैर , छोड़ो इस बात को । अपना गीत सुनाओ । "
दरबार में कानाफूसी होने लगी ।
फिर , साधू ने गीत गाना शुरू किया । उसके कंठ में जादू था ।
उसके गीत को सुनकर आकाश में काले बादल छाने लगे ।
वन में मयूर थिरकने लगे ।
और आश्चर्य की बात ! जैसा कि साधू ने कहा था - राजा के मस्तिष्क का नियंत्रण शरीर से हटने लगा ।
और देखते ही देखते राजा भरे दरबार में झूम - झूम कर नाचने लगा ।
पूरी सभा स्तब्ध हो गयी । सामने राजा मतवाला होकर नाच रहा था ।
सितार नहीं बजा !
साधू ने धीरे - धीरे गीत गाना बंद कर दिया ।
राजा के पाँव भी धीरे - धीरे शांत हो गए । उसे होश आया ।
उसे बहुत ही शर्मिंदगी महसूस हो रही थी ।
लेकिन राजा ने हार नहीं मानी ।
उसने एक बार फिर से साधू को गीत गाने को कहा । राजा ने ठान लिया था कि इस बार वह नहीं नाचेगा ।
साधू ने एक बार फिर से गीत गाना शुरू किया । फिर से आकाश में काले बादल छाने लगे । वन में मयूर थिरक उठे ।
और राजा के मस्तिष्क का नियंत्रण शरीर से हटने लगा ।
देखते ही देखते फिर से राजा भरे दरबार में झूम - झूम कर नाचने लगा ।
सभा स्तब्ध !
सितार नहीं बजा !
साधू ने धीरे - धीरे संगीत के स्वर को विराम दिया ।
राजा के पाँव धीरे - धीरे शांत हो गए ।
उसे होश आया । फिर से एक बार राजा शर्मिन्दा था ।
तब से लेकर आज तक गीत सुनकर राजा नाचने लगते हैं और सितार नहीं बजता !
जिस दिन राजा नहीं नाचेगा, सितार बज उठेगा !

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