अहैतुक

लोग आते गए और जाते गए

पर तुम कल भी थे आज भी हो !

जब नेत्र मेरे थे सजल,

तुमने ही पोछी आंखों की कोर ।

जब सुख में था विभोर,

तुमने ही लगाया गले ।

कि जब कोई नही इस एकाकी क्षण ,

तुम हो अब भी मेरे पास !

कि जब झूठे पड़ने लगे,

सदा साथ देने के वे मतलबी वादे ,

तब भी पाया तुम खड़े थे,

मेरी उँगलियाँ थामे ।

कि जब झूठे पड़ने लगे वे,

प्रेम से सिक्त वचन ,

उस क्षण भी पाया प्रभु !

कि तुमने मेरी महत्ता कम न होने दी ।

कि तुम न बोले तो सिर्फ मुझसे ही नहीं,

अपितु, सम्पूर्ण जगत के लिए रहे मौन ।

कि तुम्हारा अदृश्य होना भी ,

था तो पूरे जग के लिए ।

कि तुमने किया हो जैसे वादा कोई मुझसे ,

शीत में , उष्ण में,

सुख में, दुःख में ,

प्रेम में, विरह में ,

प्रभु ! तुम रहोगे साथ सर्वदा !

कि तुम्हे नहीं है मुझसे कोई अपेक्षा,

कि तुम्हारे पास है सिर्फ प्रेम ,

अहैतुक प्रेम !

कवि - राजू रंजन


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