छद्म बुद्धिजीवी

intellectuals

वो घूम सकते हैं सर्दियों में नंगे बदन ,
और ओढ़ सकते हैं ऊनी लबादे गर्मियों में ।
शाख पर लटकते बंदरों की भाँति ,
उन्हें शौक है उल्टा लटकने का ।
पता है उन्हें सापेक्षता का रहस्य ,
कि कुछ भी उल्टा या सीधा नहीं होता ।
कर सकते हैं वे सर्वदा ,
सत्य को निस्तेज एवं असत्य को तेजोमय ।
कि रुला सकते हैं वे न्याय को ,
और बिठा सकते हैं शिखर पर अन्याय को ।
कवि - राजू रंजन

पढ़ें : कहानी : राजा और सितार
पढ़ें : कविता : काला धन
पढ़ें : महाभारत खंड - 1 युद्ध के बीज - 12 

टिप्पणियाँ