जो प्रेम को रचते हैं

flower

कोई प्रेम करता है
किसी को प्रेम होता है
और कोई प्रेम को रचता है !
ठीक उसी भांति
जैसे मकड़ी जाले को रचती है
फिर उसमें कोई कीट अनजाने में आ फंसता है
चिपक जाते हैं उसके पंख
फिर उड़ना संभव नहीं होता
मकड़ी अपने दंश से
चूस लेती है सारा रक्त
फिर बच जाती है बस बाहरी खोल ।
उस रचे प्रेम में भी
फँस जाते हैं कोमल हृदय
मनोविज्ञान एवं दर्शन के जाले से
चिपक जाते हैं उनके पंख
फिर वो निपुण रचनाकार
चूस लेता है सारा रक्त धीमे - धीमे
बच जाती है बस बाहरी खोल ।
कवि - राजू रंजन

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