याद

greengrass


दूर तलक बिछे यादों के गलीचे पर हरियाली अभी बाकी है...
खामोश निगाहों में ख्वाबों के निशां अभी बाकी हैं ।
जब - जब चलती है ये सर्द हवा ,
कोई कहता है , इन हवाओं में पिछली लू की महक अभी बाकी है ।
वक्त की रौ में बह निकले हमारे क़दमों के निशां कहते हैं ,
भीगी मिट्टी से गुजरे क़दमों में नमी अब भी बाकी है  ।
अपने अक्स में देखा थोडा भीतर उतरकर ,
अब भी उसमें किसी और की परछाई बाकी है ।
दूर तलक बिछे यादों के गलीचे पर हरियाली अब भी बाकी है ....

टिप्पणियाँ

  1. बहोत खूब मित्र...आपकी रचना ने मेरी उन यादों को टटोला है ...जिसे मैं अपने लफ़्ज़ों में पेश कर रहा हूँ....मिसरा कुछ इस तरह है...

    कैद-ए-उल्फत है के जिंदगी का बसर बाकी है...
    मेरे हालातों में तेरे गुबार-ए-सज़र बाकी है....
    जी रहा हूँ तेरी उन यादों को लेकर,
    इस तीरगी में दुआओं का असर बाकी है...
    कोई सिकवा शिकायत तो नहीं ऐ ज़िन्दगी,
    बस बता दे के और कोई कसर बाकी है...
    घोले हैं रंज तेरे ही रिश्तों ने राठौर,के,
    अब और कोई इसमें ज़हर बाकी है...
    अकेले दूर निकल आये हैं घर से,
    तेरी उम्मीद-ए-राहगुज़र बाकी है...
    रात बहोत हो चुकी है मेरे दोस्त,
    के अब नींद का पहर बाकी है...
    माफ़ करना मेरी अनजाने गलतियों को,
    के अब दहलीज़-ए-कदर बाकी है....
    यहाँ नहीं तो ख्वाबों में मिलेंगे जरूर,
    के तुझसे तो इश्क़-ए-बदर बाकी है...


    नितेश सिंह राठौर

    सप्रेम भेंट
    जय श्रीराम ।

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